श्वेत प्रदर (Leucorrhoea)
लक्षण :- योनि से सफेद या पीला अथवा अन्य मिश्रित रंग का पानी आना, इसके कारण योनि में या योनि के आस-पास खुजली हो सकती ऐसा किसी भी अवस्था में हो सकता है और लगभग सभी महिलायें कभी-न-कभी इससे प्रभावित होती हैं। कभी-कभी स्राव इतना कम आता है कि स्त्री इसके प्रति लापरवाह बनी रहती है तथा कभी-कभी स्राव बहुत अधिक होता है। कुछ का स्राव गंधहीन होता है एवं कुछ के स्राव में भयंकर बदबू आती है। हाथ, पैर, कमर, सिर इत्यादि में दर्द, पेशाब में जलन, पेट के निचले हिस्से में भारीपन, कब्ज, कमजोरी, घबराहट, काम में मन न लगना, अधिक पेशाब, भूख की कमी, चलते समय जांघों में भारीपन इत्यादि। इस रोग के लक्षण मासिक धर्म के समय और अधिक हो जाते हैं। यह समस्या सौन्दर्य एवं स्वास्थ्य को नष्ट करती है। यह समस्या ज्यादा पुरानी हो जाये तो आँखों के चारों तरफ कालापन-सा हो जाता है।
कारण :- शरीर में विजातीय द्रव्यों का अधिक हो जाना, अयुक्ताहार विहार, कब्ज, चिन्ता, श्रम का अभाव, भोजन में विटामिन एवं लवणों (Minerals) की कमी, चाय, कॉफी, चीनी, नमक, रिफाइण्ड तले भुने मसालेदार पदार्थों का सेवन, रीढ़ सम या, बहुत अधिक या बहुत कम वजन, अन्तःस्रावी ग्रंथियों की समस्या, पोनि की सफाई में कमी। माहवारी के समय मैथुन, अधिक सम्भोग या अतृप्त यौन-वासना, हस्तमैथुन, अन्य रोग एवं अधिक औषधि सेवन, अनियमित मासिक धर्म ।
उपचार :- गर्म नींबू पानी पर उपवास फिर रसाहार (सफेद पेठा, नारियल पानी, पत्तागोभी इत्यादि)। एक सप्ताह अपक्वाहार ( (फल, सब्जियाँ एवं अंकुरित गेहूँ) लें। कैल्शियम एवं लौह प्रधान खाद्य लें। ताजे आँवले का रस एवं काले चने का सूप लें। दिन में कई बार नींबू पानी पियें। खटाई से परहेज करें। पचास ग्राम भिंडी लंबी काटकर दो सो पचास मि. ली. पानी में बीस
मिनट तक उबाल कर छानकर पियें। कुछ दिन तक नियमित पियें।
तुलसी रस में शहद मिलाकर प्रातः सायं लें। तुलसी की पत्तियों का रस चावल के मांड के साथ सेवन करें। प्रतिदिन दूब का रस या गेहूँ के जवारे का रस लें।
प्रातःकाल खाली पेट तीन दिन तक चावल का धोवन पीने से श्वेतप्रदर में आराम होता है और शाम को खाना खाने से एक-दो घंटे पहले लगातार तीन सात दिन तक चावल का ताजा मांड पीना लाभकारी है।
पीपल वृक्ष के फलों को दूध के साथ लेने से पुराना प्रदर जड़ से मिट जाता है।
नीम के गुनगुने पानी का या फिटकरी के पानी का योनि डूश लें या अर्जुन छाल को उबाल कर उसके पानी का एनीमा एवं डूश लें। एक मुलायम वस्त्र की पाँच-छः तह करके पट्टी बनाकर पानी में भिगोकर निचोड़कर योनि मार्ग पर रखें।
मिट्टी पट्टी, एनिमा, प्रातः गर्म ठंडा कटिस्नान, सायं मेहन स्नान, धूपस्नान, सूखा घर्षण । मासिक धर्म के समय मिट्टी पट्टी पानी इत्यादि के उपचार बंद करके विश्राम करें। चिन्ता, भय एवं मानसिक तनाव दूर करें। रात एक घंटे तक गीली कमर लपेट।
सूर्यतप्त हरे रंग की बोतल के पानी को पीयें एवं योनि डूश दें।
नाड़ीशोधन, उज्जायी, भस्त्रिका प्राणायाम, मूलबन्ध व उड्डियान बंध करें।
पश्चिमोत्तानासन, सर्वांगासन, हलासन, पदमासन, भुजंगासन, शलभासन करें।
एक्यूप्रेशर में हाथ की कलाईयों के दोनों तरफ दबाब एवं टखनों के नीचे दोनो पैरों पर दबाब बहुत उपयोगी है।
चेतावनी: आयुर्वेदाचार्य अथवा डॉक्टर के परामर्श के बिना आप साइट पर दिए हुए सूचना को पढ़कर किसी भी प्रकार की औषधि एवं उपचार का प्रयोग ना करें !!!
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