सियटिका (Sciatica)

लक्षण :- कमर के निचले हिस्से से लेकर किसी एक पाँव तक सियटिका नाड़ी का असहनीय दर्द। रोगी टाँग सीधी नहीं रख पाता। खड़ा नहीं हो पाता है। चक्कर आते हैं। यह दर्द कभी धीरे-धीरे और कभी जोर से होता है। बुखार भी हो जाता है।

कारण :- रीढ़ की हड्डी (Spine) में चोट, सियटिका नाड़ी के पास विजातीय द्रव्यों का इकट्ठा हो जाना जिससे नाड़ी का दब जाना, डिस्क समस्या (Disc Problem) या रीढ़ की हड्डी के निचले भाग का आर्थराइटिस, लंबे समय तक एक तरफ झुककर खड़े रहना या बैठना, असंतुलित भोजन, रात्री जागरण, क्षमता से अधिक परिश्रम, अनियमित आहार-विहार एवं सहवास तथा किसी कारण से रीढ़ के निचले भाग पर चोट ।

उपचार :- गर्म जल व नींबू के रस पर उपवास। फिर रसाहार (सफेद पेठे का रस बहुत ही उपयोगी है), अपक्वाहार (फल, सलाद, खजूर, अंकुरित अन्न), जायफल का सेवन करें एवं लहसुन की कली छोटी करके पानी से निगल लें। फलों का रस दिन में तीन बार एवं आँवला का रस शहद मिलाकर लें।

मिट्टी पट्टी, एनिमा, कटिस्नान, मेहनस्नान, पैर व टाँग पर लपेट आवश्यकतानुसार गर्म ठंडा कटिस्नान, गर्म पाद स्नान, सूर्यस्नान, तेल मालिश, रीढ़ स्नान, साप्ताहिक गीली चादर लपेट करें। लकड़ी के तख्त या जमीन पर सोयें। पूर्ण विश्राम करें।

सूर्यतप्त लाल रंग की बोतल के तेल की मालिश एवं नारंगी रंग की

बोतल का पानी पियें। तुलसी के पत्तों को पीसकर पानी मिलाकर पियें। हरसिंगार के पत्तों का काढ़ा प्रातः खाली पेट लें।

योगमुद्रासन, गरुड़ासन, वज्रासन, गोमुखासन, पवनमुक्तासन, भुजंगासन, शलभासन, शवासन, उत्तानपादासन, योगनिद्रा, नाड़ीशोधन प्राणायाम करें। प्रातः एवं सायं दो-दो मिनट पैरों के तलवों से ताली बजायें।

चेतावनी: आयुर्वेदाचार्य अथवा डॉक्टर के परामर्श के बिना आप साइट पर दिए हुए सूचना को पढ़कर किसी भी प्रकार की औषधि एवं उपचार का प्रयोग ना करें !!!

सोना आयुर्वेद & प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र

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