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पथरी (Stone)

पथरी (Stone)

पथरी तो वास्तव में विजातीय द्रव्य कणों का समूह है। यह शरीर के विभिन्न स्थानों पर हो सकती है। यह छोटी बड़ी अनेक एवं विभिन्न आकृतियों की हो सकती है।

(1) पित्ताशय की पथरी (Stone of Gall Bladder) यह पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक पाई जाती है।

लक्षण :- प्रारम्भिक अवस्था में प्राय: अरुचि और अपच के लक्षण होते हैं। भोजन करने के बाद पेट में भारीपन होने लगता है। पित्ताशय में तीव्र दर्द का होना ही इस रोग का प्रधान लक्षण है। इसके साथ-साथ प्रायः कम्पन, ज्वर, जी मिचलाना, उल्टी आदि लक्षण भी प्रकट हो सकते हैं।

कारण :- अधिक भोजन करना, भोजन में चिकनाई वाले पदार्थों की अधिकता, औषधियों का अधिक सेवन, मसालों का अधिक सेवन, अतिनिद्रा, अधिक मद्यपान, कब्ज, मेहनत की कमी, माँस, अण्डा इत्यादि का अधिक सेवन, स्त्रियों में प्रदर रोग इत्यादि ।

(2) गुर्दे और मूत्रसंस्थान में पथरी (Stone of the Kidney and Urinary Tract)

लक्षण :- उदर के अग्रभाग में अचानक अत्यंत असहनीय दर्द उठता है. कभी-कभी जी मिचलाता है और उल्टी भी हो जाती है। पेशाब कष्ट से होना, पथरी के दर्द के कारण कभी-कभी ज्वर भी आ जाता है। कंपकपी होती. है और पसीना भी आने लगता है। कभी-कभी पेशाब में रक्त भी आ सकता हैं। को ले जाने वाले मार्गों में रुकावट हो जाने से मूत्र की धार फट जाती मूत्र है। कई बार मूत्रयंत्र में पथरी दीर्घकाल तक रहते हुये भी किसी प्रकार का लक्षण उत्पन्न नहीं करती।

कारण :- मलमूत्र के वेगों को रोकना, कम पानी पीना, भोजन में अधिक नमक, मिर्च मसाले, अचार, चीनी एवं मैदे से बने खाद्य पदार्थ, तले भुने खाद्य पदार्थ, औषधियों का अधिक सेवन, तम्बाकू, गुटका इत्यादि, विटामिन ए, बी और सी की कमी, गठिया रोग अत्यधिक शारीरिक और मानसिक परिश्रम चिन्ता इत्यादि। पथरी रोगों का उपचार :

जब तक तीव्रावस्था शान्त न हो, गर्म नींबू पानी पी कर उपवास करें। तत्पश्चात् तीन से सात दिन तक सफेद पेठे का रस, केले के डंडे के रस को नारियल पानी में मिलाकर, पत्ता गोभी रस, तरबूज का रस, गाजर का रस, संतरा

रस, लौकी का रस इत्यादि पर उपवास छः सप्ताह तक फलाहार करें। अंगूर, सेब, नाशपाती, अनानास, आँवला का प्रयोग उत्तम है। पका जामुन, मैथी, बथुआ, चौलाई, धनिया, पुदीना के पत्तों का साग अत्यंत लाभकारी है। पालक का रस शहद मिलाकर पियें। मूली का बीस ग्राम

रस रोज पियें। गाजर एवं चुकन्दर का रस दिन में तीन-चार बार पियें। हरी

सब्जियों का सूप पियें। प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ, वसायुक्त पदार्थ (दूध, मलाई, पनीर, ची आदि) एवं माँसाहार का सेवन न करें। पाँच ग्राम पपीते की जड़ अच्छी तरह धोकर पानी के साथ पीसकर और कपड़े से छानकर प्रातः खाली पेट तीन सप्ताह तक पियें। पित्ताशय (GallBladder) की पथरी गलकर निकल जायेगी।

हर प्रकार की पथरी के लिये पचास ग्राम कुलथी की दाल पानी से धोकर एक कप पानी में भिगोकर शाम को रख दें और सुबह मथकर उसका पानी पी लें।

तुलसी पत्तों के साथ अंजीर खायें खम्बा के 2-4 पत्ते रोज खायें। नियमित

छः महीने तुलसी के पत्तों का रस शहद के साथ लें तथा इसका प्रयोग भविष्य में पथरी (Stone) बनने से रोकता है।

पालक एवं टमाटर को पथरी के लिए जिम्मेदार माना जाता है लेकिन

इनका कच्चा उपयोग किया जाये तो कभी भी पथरी नहीं बनाते।

पेट पर मिट्टी पट्टी, एनिमा पेट का गर्म ठंडा सेंक, कटिस्नान, भापस्नान, गीली चादर लपेट गर्म पाद स्नान, मेहन स्नान, गर्म ठंडी सेंक, सुखा

घर्षण, मेरूदण्ड की मालिश लाभकारी है। सूर्यतप्त सफेद बोतल का पानी पियें जिससे शरीर को विटामिन डी प्राप्त

होगा जो कैल्शियम को हजम करेगा। योगमुद्रासन, हलासन, धनुरासन, भुजंगासन, शलभासन, पश्चिमोत्तानासन, सर्वांगासन तथा प्राणायाम अति उत्तम है।

तत्काल उपचार के लिए जब तक दर्द दूर नहीं हो जाये, गर्म पानी के टब में बैठे रहें। पानी के ठंडा होने पर उसमें थोड़ी-थोड़ी देर पर गर्म पानी डालते जायें।

यदि गर्म पानी के टब में बैठना सम्भव न हो तो गर्म पानी से भीगा तौलिया उदर पर रखें। थोड़ी-थोड़ी देर में बदलते रहें।

चेतावनी: आयुर्वेदाचार्य अथवा डॉक्टर के परामर्श के बिना आप साइट पर दिए हुए सूचना को पढ़कर किसी भी प्रकार की औषधि एवं उपचार का प्रयोग ना करें !!!

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