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थाइराइड (Thyroid)

थाइराइड (Thyroid)

थायराईड रोग (Thyroid Disease ) थाइराईड वह अंतःस्रावी ग्रन्थि (Endrocrine Gland) है जो शरीर के

दैनिक कार्य-कलाप को नियंत्रित करती है। थायराईड रोग महिलाओं में अधिक पाया जाता है। यौवन प्रवेश के समय (Puberty), गर्भावस्था के दौरान, रजोनिवृत्ति के समय या शारीरिक तनाव

के समय यह ज्यादा प्रभावित करता है।

थाइराईड के रोग निम्न प्रकार है :

  1. घेघा (गलगंड) (Goitre) :- थायराईड की एक या एक से अधिक ग्रंथिका (Nodule) में सूजन आ जाती है। यह सूजन गले पर उभर जाती है। कभी-कभी यह सूजन गले पर नजर भी नहीं आती है लेकिन त्वचा से महसूस किया जा सकता है।

लक्षण :- एकाग्रता-शक्ति कमजोर हो जाती है। उदासी आ जाती है,

रोना आ जाता है, चिड़चिड़ापन हो जाता है, मानसिक संतुलन खो जाता है एवं

वजन कम हो जाता है।

धीरे-धीरे शरीर के भीतरी भागों में रुकावट आती रहती है जिससे कालांतर में शरीर विषयुक्त हो जाता है। थायराईड का बढ़ना (Hyper Thyrodisim ) :- इसमें थायराईड

ग्रन्थि हारमोन ज्यादा बनाने लगती है।

लक्षण :- वजन कम होना (Under Weight), जल्दी घबराना, कमजोरी, गर्मी सहन नहीं होना, अधिक पसीना आना, अँगुलियों में कँपकँपी भी हो सकती है। हृदय की धड़कन बढ़ जाना, बार-बार पेशाब आना, थकावट, याददास्त कमजोर होना, उच्च रक्तचाप, अधिक भूख लगना, माहवारी में गडबडी, बालों का झड़ना इत्यादि ।

थाइराईड का सिकुड़ना (Hypothyrodism ) :- इसमें थायराईड ग्रन्थि हारमोन कम बनाने लगती है।

लक्षण :- वजन का बढ़ना, सर्दी सहन नहीं होना, कब्ज रहना, रूखे सूखे बाल, कमर दर्द, जोड़ों में अकडन, नब्ज की गति धीमी हो जाना, चेहरे पर सूजन।

T, ट्राइआयोडोथाइरोनीन (Tri-Iodothyronine) एवं T. – टेट्रा आयोडोथाईरोनीन

थायराईड रोगों के लिए रक्त जाँच :- थाइराइड के दोनों हारमोन (Tetra-lodothyronine) जो कि थायराईड हारमोन हैं, की रक्त में कितनी मात्रा ज्यादा है। दूसरे लक्षणों के साथ यदि हारमोन की मात्रा ज्यादा है तो थायराईड बढ़ा हुआ (Hyperthyroidism) है, यदि दूसरे लक्षणों के साथ हारमोन की मात्रा कम है तो थायराइड सिकुड़ा हुआ (Hypothyrodism) है।

थायराईड रोगों के कारण :- भोजन में आयोडीन की कमी होना। यह उन लोगों में ज्यादा पायी जाती है जो केवल पका हुआ भोजन करते हैं एवं प्राकृतिक भोजन बिलकुल नहीं करते। प्राकृतिक भोजन से शरीर को आवश्यकतानुसार आयोडीन मिल जाता है लेकिन पकाने से यह नष्ट हो जाता है। मानसिक एवं भावनात्मक तनाव, वशानुगत, गलत आहार विहार।

थायराइड रोगों के उपचार :- पहले पाँच दिन रसाहार (नारियल पानी, पत्तागोभी, गाजर, चुकन्दर, अनानास, संतरा, सेब, अंगूर इत्यादि का रस) उसके बाद तीन दिन तक फल एवं तिलों का दूध लें, फिर सामान्य आहार पर आ जायें जिसमें पत्तेदार हरी सब्जियाँ, फल, सलाद, अंकुरित इत्यादि का भरपूर समावेश हो।

कम-से-कम एक वर्ष तक भोजन का आधा भाग फल, सलाद एवं अंकुरित अवश्य होना चाहिए। कमलगट्टा, मखाना, सिंघाडा, अनानास लाभदायक है।

मैदा, चीनी, तली भुनी चीजें, चाय, कॉफी, शराब, डिब्बाबंद खाद्य

इत्यादि बहुत ही हानिकारक हैं। उन्हें भूलकर भी न लें। एक कप पालक के रस में एक बड़ा चम्मच शहद, एक चौथाई छोटा चम्मच जीरे का चूर्ण मिलाकर रोज रात को सोने से पहले लें।

एक गिलास पानी में दो चम्मच साबुत धनिया रात भर भिगोकर सुबह उसे मसलकर उबाल लें। चौथाई पानी रह जाने पर खाली पेट पी लें। प्रतिदिन नमक डालकर गर्म पानी के गरि करें।

मिट्टी पट्टी, एनीमा, कटिस्नान इत्यादि से शरीर को विष रहित करना

आवश्यक है। गले की गीली पट्टी, मिट्टी पट्टी करें। थकावट न आने दें। भरपूर विश्राम करें, पूरी नींद लें। मानसिक शारीरिक

एवं भावनात्मक तनाव से दूर रहें।

अंतःस्रावी ग्रन्थियों (Endocrine Glands) को ठीक करने के लिए योगमुद्रासन एवं प्राणायाम के समान कोई पद्धति नहीं है। शवासन, योगनिद्रा, पवनमुक्तासन, मत्स्यासन, सुप्तवज्रासन, ग्रीवा शक्ति विकासक करें। उज्जायी एवं भ्रामरी प्राणायाम करें एवं जालंधर बंध लगायें।

चेतावनी: आयुर्वेदाचार्य अथवा डॉक्टर के परामर्श के बिना आप साइट पर दिए हुए सूचना को पढ़कर किसी भी प्रकार की औषधि एवं उपचार का प्रयोग ना करें !!!

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